तत्पुरुष समास की परिभाषा (Tatpurush Samas in Hindi):-
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जिस समस्तपद में उत्तरपद (अन्तिम पद) की प्रधानता रहती है, उसे ‘तत्पुरुष समास’ कहते हैं, जैसे- राजकन्या, देवपुत्र आदि। इन सभी शब्दों का क्रमशः वह राजा की कन्या तथा ‘देव का पुत्र’ । ‘राजकन्या जाती हैं इस वाक्य में जाना क्रिया का सम्बन्ध कन्या से है. राजा से नहीं जाने वाली कन्या है राजा नहीं । जाना’ क्रिया भी ‘ कन्या ‘ के ही अनुसार स्त्रीलिंग में प्रयुक्त है। अत: ‘राजकन्या’ शब्द में बाद वाले ‘कन्या’ शब्द की प्रधानता है, इसलिए यह तत्पुरुष समास है। देवपुत्र के साथ भी यही बात है। तत्पुरुष समास में समस्तपदों के लिंग और वचन अन्तिम पद के अनुसार ही होते हैं।
तत्पुरुष समास के उदाहरण (tatpurush samas ke udaharan) और भेद:-
अवयव की दृष्टि से तत्पुरुष समास के दो भेद है:-
१. व्यधिकरण तत्पुरुष
२. समानाधिकरण तत्पुरुष
१. व्यधिकरण तत्पुरुष:- व्यधिकरण तत्पुरुष ‘व्यधिकरण तत्पुरुष’ उसे कहते हैं, जिसमें प्रयुक्त पदों में से पहला पद कर्ता कारक (प्रथमा विभक्ति) का नहीं होता जैसे – धर्म बन्धनमुक्त आदि। इन दोनों शब्दों का विग्रह है ‘धर्म से भ्रष्ट तथा ‘बन्धन से मुक्त’। ‘धर्म’ तथा ‘बन्धन’ शब्दों में कर्ता कारक नहीं है, बल्कि अपादान कारक है या पंचमी विभक्ति है; अत: ‘धर्मभ्रष्ट’ और बन्धनमुक्त में व्यधिकरण तत्पुरुष है।
व्यधिकरण तत्पुरुष समास के उदाहरण तथा छह भेद:-
व्यधिकरण तत्पुरुष के छह भेद:-
(1) द्वितीया तत्पुरुष, (2) तृतीया तत्पुरुष, (3) चतुर्थी तत्पुरुष, (4) पंचमी तत्पुरुष, (5) षष्ठी तत्पुरुष तथा (6) सप्तमी तत्पुरुष। द्वितीया, तृतीया आदि के स्थान पर कर्म, करण आदि भी कहे जाते हैं।
(1) द्वितीया तत्पुरुष:- इसके पहले पद में कर्म कारक या द्वितीया विभक्ति हती है, जैसे-सुख को प्राप्त सुखप्राप्त गृह को आगत-गृहागत ।
(2) तृतीया तत्पुरुष:- इसके पहले पद में करण कारक या तृतीया विभक्ति ड़ती है, जैसे बाण से विद्ध बाणविद्ध। बाक् से युद्ध वायुद्ध, नीति से युक्त नीतियुक्त।
(3) चतुर्थी तत्पुरुष:- इसके पहले पद में सम्प्रदान कारक या चतुर्थी विभक्ति रहती है। जैसे-कृष्ण के लिए अर्पण कृष्णार्पण। देव के लिए बलि देवबलि सभा के लिए भवन सभाभवन ।
(4) पंचमी तत्पुरुष:- इसका पहला पद अपादान कारक या पंचमी विभक्ति से युक्त होता है, जैसे- बन्धन से मुक्त बन्धनमुक्त ऋण से मुक्त ऋणमुक्त जाति से भ्रष्ट जातिभ्रष्ट।
(5) षष्ठी तत्पुरुष:- इसके प्रथम पद में सम्बन्ध कारक या पष्ठी विभक्ति रहती है; जैसे- कन्या का दान कन्यादान। सेना का नायक सेनानायक पुस्तक का आलय पुस्तकालय ।
(6) सप्तमी तत्पुरुष:- इसके पहले पद में अधिकरण कारक या सप्तमी विभक्ति रहती है; जैसे कार्य में कुशल कार्यकुशल ग्राम में वास ग्रामवास, प्रेम में मग्न प्रेममग्न।

२. समानाधिकरण तत्पुरुष:-जिस तत्पुरुष के सभी पदों में समान कारक या विभक्ति (कर्ता कारक- प्रथमा विभक्ति) पायी जाय, उसे समानाधिकरण तत्पुरुष कहते हैं, जैसे- नीला है जो उत्पल-नीलोत्पल ‘नीलोत्पल’ शब्द में दो शब्द है नौल और उत्पल इन शब्दों में प्रथमा विभक्ति है, अतः यहाँ समानाधिकरण तत्पुरुष है।समानाधिकरण तत्पुरुष को ही ‘कर्मधारय कहते है।
‘कर्मधारय समास कई रूपों में पाया जाता है, जैसे- (1) विशेषण विशेष्य, (2) द्विगु, (3) उपमानोपमेय, (4) प्रादि समास (5)अन्ञ् समास और (6) मध्यमपदलोपी तत्पुरुष ।
(1) विशेषण विशेष्य:- इस समास में पहला पद विशेषण होता है और दूसरा पद विशेष्यः जैसे महान् राजा-महाराजा । पर आत्मा परमात्मा। नील कमल नीलकमल । इनका विक्रमश होगा महान् है जो राजा, परम से जो आत्मा तथा नील है जो कमल ।
(2) द्विगु:- जिस कर्मधारय में पहला पद संख्यावाचक हो, उसे ‘द्विगु समास’ कहते हैं, जैसे- पाँच पात्र पंचपात्र। तीन भुवन त्रिभुवन, चार वर्ण चतुर्वर्ण, तीन फल-त्रिफला ।
(3) उपमानोपमेय या रूपक:- जिससे किसी चीज की उपमा दी जाय उसे ‘उपमान’ कहते है और जिसकी उपमा दी जाय उसे ‘उपमेय’ कहते है। इस समास में उपमेय का पहले प्रयोग होता है और उपमान का बाद मे जैसे चन्द्र की तरह मुख चन्द्रमुख कमल की तरह मुख मुखकमल ।
जब समता की अधिकता दिखानी हो, तो की तरह का प्रयोग न कर ‘रूपी’ शब्द का प्रयोग करते हैं। जैसे- मुखरूपकमल मुख कमल नेत्रकमल आदि।
(4) प्रादि समास:- इसमें प्र आदि उपसगों तथा दूसरे शब्दों का समाय होता है। ” आदि के साथ उन्हीं के अंग के रूप में दूसरे शब्द भी जुड़े रहते हैं, परन्तु समास करने पर हो जाते हैं जैसे- प्रकृष्ट आचार्य प्राचार्य ।
(5) अन्ञ् समास:- इस समास का पहला पद” (अर्थात् नकारात्मक) होता है। समास में यह अन्ञ् अन, अ, अन् रूप में पाया जाता है। कभी-कभी यह ‘न’ रूप में भी पाया जाता है, जैसे – न देखा-अनदेखा।
(6) मध्यमपदलोपी तत्पुरुष:- यह भी कर्मधारय का ही भेद है, परन्तु इसमें जिन शब्दों का समास होता है, उनमें सम्बन्ध बतलाने वाले शब्दों का लोप होता है। जैसे – देवपूजक ब्राह्मण = देवब्राह्मण, शाकप्रिय पार्थिव = शाकपार्थिव। यहाँ ‘देव’ और ‘ब्राह्मण’ तथा ‘शाक और ‘पार्थिव’ का सम्बन्ध बताने वाले शब्द ‘पूजक’ तथा ‘प्रिय’ लुप्त हो गये है ।
उपपद समास और अलुक समास भी तत्पुरुष के भेद है।
उपपद समास:- जिस समास का अन्तिम पद ऐसा कृदन्त होता है, जिसका अलग से प्रयोग नहीं होता, उसे उपपद समास’ कहते हैं।जैसे-जल को देनेवाला जलद ।
अलुक समास:- जिस तत्पुरुष के पहले पद की विभक्ति का लोप नहीं होता, उसे ‘अलुक् तत्पुरुष’ कहते हैं, जैसे – युधिष्ठिर, खेचर आदि।
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