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आयुर्वेद के अनुसार वात और कफ के असंतुलन के कारण मधुमेह रोग होता है। यहां भी उन सभी खाद्य पदार्थों के सेवन की मनाही है,। आयुर्वेद में मधुमेह उपचार (Sugar ka Ayurvedic ilaaj) के नीचे लिखे औषधीय उपाय सुझाए गए हैं जिनका प्रयोग मधुमेह रोगी अपनी रोग और शारीरिक आवश्यकता और प्रकृति के आधार पर कर सकते हैं।

शुगर कौन सी जड़ी बूटी से जाती है(Sugar ka Ayurvedic ilaaj)?:-
करेला-ताजा संपूर्ण करेले का रस 100-150 एम.एल. रोजाना लें। ऋतु के दिनों में करेलों को सुखाकर उनका चूर्ण कूटकर तैयार कर लें और रोजाना एक चम्मच दिन में तीन बार पानी से लें।
मेथी-मेथी के दानों की 15-20 ग्राम मात्रा सुबह-शाम पानी या दूध से लें। या 15-30 ग्राम मेथी के दानों को एक कप पानी में भिगो लें और सुबह दानों को पानी में हाथ से मथकर पानी पी लें, चाहें तो भीगे दानों को भी पानी पीने के बाद में चबाकर खा लें।
सौ ग्राम मेथी के दानों में 50 ग्राम पिसी हल्दी और 5 ग्राम दक्खनी मिर्च कूट लें। यह चूर्ण 5-10 ग्राम सुबह और रात को दूध से लें।
रस और भस्म-बंग भस्म, अभ्रक भस्म, हरिशंकर रस, बंगेश्वर रस, मेघनाद रस में से कोई भी औषधि – ग्राम की मात्रा में लें। यदि आवश्यकता पड़े तो दो या इसे अधिक भस्म। रस समान मात्रा के अनुपात में मिला लें। परंतु खुराक की मात्रा वही रहेगी। अनुपान के लिए गरम दूध या गरम जल का प्रयोग करें।
शुगर की आयुर्वेदिक दवा (Sugar ka Ayurvedic ilaaj)क्या है?
वसंतकुसुमाकर रस-यह सर्वोत्तम योग माना गया है, हालांकि यह सबसे ऊंचे दाम की दवाई है। इसका योग कई आयुर्वेदिक कंपनियों द्वारा तैयार करके बेचा जाता है। किसी भी ब्रांड की एक-एक गोली दिन में दो या तीन बार दूध से लें।
चंद्रप्रभावटी-सुबह, दोपहर और रात को 1- 1 गोली पानी या दूध के साथ रोजाना लें।
एक वैद्य के अनुसार-10 दिन तक वसंत कुसुमाकर रस की निर्दिष्ट मात्रा लें। उसके बाद 20 दिन तक केवल चंद्रप्रभावटी खा लें। (1-1 गोली दिन में तीन बार)। इसी प्रकार यही क्रम जारी रखें या एक सप्ताह वसंतकुसुमाकर रस और फिर एक सप्ताह चंद्रप्रभावटी लें। यही क्रम जारी रखें। अवस्था सुधरने पर (मूत्र और खून में उपस्थित शुगर की मात्रा के आधार पर) कम कर दें। मात्रा का निर्धारण मात्रा पर निर्भर करेगा।
शुगर के लिए घरेलू नुस्खे:-
1. शुगर की आयुर्वेदिक इलाज – मौसम में ताजा जामुन का फल 100 ग्राम रोजाना खाएं।
2. गुड़मार बूटी, विजयसार, मेथी, करेले का चूर्ण, त्रिफला, जामुन की गुठली, हल्दी, नीमपत्र, बबूल का पंचांग, बिल्वपत्र, सदाबहार के फूल, नीमी का पंचांग, कुटकी-सभी घटक बराबर मात्रा में लें और सभी का बारीक चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को करेले के रस में भिगोकर एक दिन के लिए रखें। जब सूख जाए तो पाउडर शीशी या डिब्बे में बंद करके सुरक्षित रख लें। रोजाना 5 ग्राम मात्रा नाश्ता, दोपहर और रात के भोजन के बाद लें।
3. 21-2 चम्मच त्रिफला या ईसबगोल की भूसी या एक चम्मच दोनों को मिलाकर रात को सोने से पहले गरम दूध से लें।
नोट-सभी औषधीय घटक और मिश्रण सभी रोगियों को एक समान न तो लाभ करते हैं, न ही उनका प्रभाव एक समान होता है। इसलिए ऋतु स्थान, अपनी प्रकृति, स्थानीय जलवायु, वातावरण तथा रोगावस्था को ध्यान में रखकर यदि कोई औषधि ली जाए तो अधिक और जल्दी लाभ होता है।
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