Soybean in Hindi – No.1 सोयाबीन की खेती करने का तरीका

सोयाबीन परिचय (Soybean in Hindi):-

सोयाबीन विश्व की सबसे महत्वपूर्ण तेलहनीवल फसल है. यह एक बहुदेशीय व एक वर्षीय पौधे की फसल है। यह भारत की नंबर वन तेलहनी फसल है, सोयाबीन का वनस्पति नाम गलाइसीन मैक्स है। इसका कुल लम्युमिनेसों के रूप में बहुत कम उपयोग किया जाता है सोयाबीन का उद्गम स्थान अमेरिका है। इसका उत्पादन अमेरिका, ब्राजील अजेन्टाइन आदि देश में है सोयाबीन की खेती सम्पूर्ण भारत में की जा सकती है। लेकिन देश में प्रथम मध्यप्रदेश दूसरा महाराष्ट्र तीसरा राजस्थान राज्य है।

Soybean in Hindi - No. 1 सोयाबीन की खेती करने का तरीका

सोयाबीन की खेती का क्षेत्र व उपयोगिता क्या है।

हमारे देश में लगभग 108.834 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सोयाबीन की खेती की जाती है और सोयाबीन का विश्व उत्पादन में भारत का पाचवा स्थान है. इस फसल का पौत क्रांति में भी विशेष योगदान रहा है। सोयाबीन में 40 से 42 प्रतिशत प्रोटीन पाया जाता है 20 से 22 प्रतिशत तेल 25 से 31 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट तथा लगभग 5 प्रतिशत मिनरल पाया जाता है। सोयाबीन तेल से अनेक औद्योगिक पदार्थ जैसे प्लाइवुड का सामान, विटामिन, कागज, रबड टाइपराइटर का रिबन, साबुन वार्निश कीटनाशक रसायन विस्फोटक पदार्थ मोमबत्ती स्याही तथा सौन्दर्य प्रसाधन सामग्री का निर्माण किया जाता है एवं सोयाबीन से भोज्य पदार्थ जैसे दूध, दही, मक्खन, पनीर आदि बनाये जाते हैं।

सोयाबीन की खेती मे जलवायु व तापमान कितना होना चाहिए।

सोयाबीन की फसल साधारण शीत से लेकर साधारण उष्ण जलवायु वाले क्षेत्रों में आसानी से उगायी जा सकती है। सोयाबीन के बीज और फूल को 15 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान में अच्छा अंकुरित होने में 7-10 दिन लगते है, जबकि 21-32 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान पर ये केवल 3-4 दिन में ही अंकुरित हो जाते हैं 50 डिग्री फॉरेनहाइट तापमान पर पौधे की वृद्धि बहुत ही कम होती है। सोयाबीन के फूल आने के समय तापमान का विशेष प्रभाव पड़ता है 23 से 25 डिग्री सेंटीग्रेड तक प्रति 10 डिग्री की वृद्धि होने पर फूलने का समय 2-3 दिन बढ़ जाता है।

बहुत अधिक तापमान 38 डिग्री सेंटीग्रेड से अधिक होने पर ही सोयाबीन की वृद्धि विकास एवं बीज के गुणों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। तापमान कम होने पर तेल की मात्र घट जाती है। सोयाबीन की अधिकांश किस्मों में दिन लम्बा होने पर ही फूल आता है, फूलने तक की अवधि फल की फलिया लगने तक की अवधि पकने की अवधि गाठो की संख्या तथा पौधों की ऊँचाई पर दिन की लम्बाई का बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है दिन बड़े होने पर उपरोक्त सभी अवस्थाओं की अवधि में वृद्धि हो जाती है। सोयाबीन में फूल तभी आता है जब दिन को लम्बाई फ्रांतिक अवधि से कम हो इसलिए इसको अल्प प्रकाशी पौधा भी कहते हैं।

सोयाबीन की खेती मे नमी कितना होना चाहिए।

सोयाबीन में पौधों के अच्छे अंकुरण के लिए अधिक नमी तथा लगातार कम नमी दोनों ही अवस्थाएं हानिकारक है। अंकुरण के पश्चात् कुछ समय तक नमी के अधिक या कम होने पर पौधी पर कोई विशेष हानिकारक प्रभाव नहीं पढ़ता है। अच्छी फसल के लिए कम से कम 60-75 से.मी. वर्षा की आवश्यकता है।

यदि पुष्पीय कलिया विकसित होने से 2 से 4 सप्ताह पूर्व पानी की कमी हो जाये तो इसमें पोचों की वनस्पतिक वृद्धि पट जाती है। परिणामस्वरूप बहुत अधिक संख्या में फूल तथा फलिया गिर जाती है। फलियों के पहले समय वर्षा होने पर फलियों पर अनेक बिमारियों लग जाती है। जिससे वे सड़ जाती है। तथा बीज की उत्पादकता घट जाती है। अतः फलियों का पकने का समय वर्षा सोयाबीन के लिए हानिकारक होता है।

बीज का अंकुरण परीक्षण:-

बीज का अंकुरण परिक्षण करना अत्यंत आवश्यक है। अकुरण परीक्षण हेतु पानी से भीगे टाट के टुकड़े में बीज के 100 दानों को लाईनों में अथवा अखबार की दो पन्नों को लेकर उसके आधे भाग को गीला कर बीज के 100 दाने लाईन में रखकर उसी से ढक दें. रोजाना पानी का छिड़काव करे जिससे नमी बनी रहे। उक्त कार्य को 2-3 बार अलग-अलग टाट की बोरी पर करें। 6-8 दिन बाद उपरी परत को उठाकर अंकुरित दाना की संख्या को गिन लें। अंकुरित दानों का प्रतिशत 70 या इससे अधिक होने पर ही बीज के रूप में उपयोग करें कम अंकुरण प्रतिशत पाये जाने पर बीज की मात्रा की गणना निम्नानुसार हेक्टेयर में करें।

सोयाबीन की खेती मे रासायनिक उर्वरक प्रयोग महत्व एवं उपयोग विधि:-

इसकी फसल आवश्यकता से भी अधिक मुदा उर्वरता बढ़ाती है। सोयाबीन भूमि में वायुमंडलीय नवजन का स्थितिकरण करती है और अगली फसल के लिए 32-55 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर नत्रजन स्थितिकरण करती है।

मृदा कैसा होना चाहिए।

सोयाबीन की होती सभी प्रकार की मुद्राओं में अति जतीय, क्षारीय व रेतीली मृदाओं को छोड़कर की जा सकती है। मृदा में जल निकास होना चाहिए तथा जैविक कार्बन की मात्रा भी होगी चाहिए। मुख्य रूप से दोमट मटीयाद व काली मिट्टी में सोयाबीन का उत्पादन सफलता पूर्वक किया जा सकता है।

मिट्टी के कटाव से बचाव:-

भूमि को कटाव से बचाने के लिए मिट्टी पत्थर विटना से मेरा बनाएँ व जल निकास की व्यवस्था करें। खेत के आस-पास के स्थान पर नालियाँ बनाएँ ये नालिया भूमि में संवर्धन के साथ ही से बहकर जाने वाली मिट्टी को इकट्ठा करने में सहायक होती है।

सोयाबीन की खेती कैसे करें।

इसके लिए चिकनी भारी उपजाऊ अपछे जल निकास वाली मिट्टी उपयुक्त रहती है। फसल की अच्छी वृद्धि के लिए खेत को मली भांति तैयार करना चाहिए। गरमी के मौसम में एक गहरी जुताई करनी चाहिए, जिससे भूमि में उपस्थित कीडे, रोग एवं खरपतवार के बीजों की संख्या में कमी होती है तथा जल धारण की क्षमता में वृद्धि होती है।

खेत से पूर्व बोई गई फसल के अवशेष व जड़े निकाल देनी चाहिए एवं गोबर की अच्छी तरह से सही हुई खाद या कम्पोस्ट 50 से 100 कि. प्रति हेक्टेयर खेत में मिला देना चाहिए। उसके बाद दो बार कल्टीवेटर से जुताई कर भूमि को मुर-गुरी कर खेत को समतल कर ले खेत की अच्छी तैयारी अधिक अंकुरण के लिए आवश्यक है।

सोयाबीन की खेती कैसे करें।

सोयाबीन की बुवाई का समय एवं अवधि:-

इसकी बुवाई मानसून आने के साथ ही करनी चाहिए बुवाई के समय भूमि के अन्दर कम से कम 10 से.मी. की गहराई तक पर्याप्त नमी होनी चाहिए। सोयाबीन की बुवाई का समय जून महीने के तीसरे सप्ताह से जुलाई माह के प्रथम सप्ताह तक सबसे उपयुक्त समय है। बुवाई सिड ड्रिल या हल के साथ नायली बाधकर पतियों में 30 से 45 से.मी की दूरी पर करें तथा पौधों की संख्या 450 लाख प्रति हेक्टेयर होनी चाहिए। अच्छे अंकुरण के लिए पर्याप्त नमी का होना अत्यंत आवश्यक है। सोयाबीन की फसल की अवधि लगभग 100 से 120 दिनों की होती

सोयाबीन भाव (बीज दर):-

उचित अंकुरण के लिए छोटे एवं मध्यम दाने वाली किस्मों का 75-80. किलो बीज प्रति हेक्टेयर एवं मोटे दाने वाली बीजाई के लिए किस्मों का 100 किलो बीज प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई करनी चाहिए। खरीफ में 75-80 किया तथा गया में 100-120 किग्रा की दर से प्रयोग करें।

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बीज उपचार:-

सोयाबीन को रोगों से ग्रसित होने से बचाने के लिए सोयाबीन के बीजों को बोने से पहले फन्दनाशक दवाओं से बीजोपचार अवश्य करे बीजोपचार रोग नियंत्रण का एक संस्ता व सरल उपाय है। इस किया से बीजों का अंकुरण अच्छा शीघ्र एवं एक समान होता है सीधे स्वस्थ एवं अच्छी वृद्धि करते हैं, जिससे बीज उपज में भी वृद्धि होती है बीज उपचार में निम्न प्रकार की दवाइयों का उपयोग किया जा सकता है।

इसके लिए बीज को थाइरम या कार्बेन्डाजिम मेटालेजिल कार्बोक्सिन मैकोरलेन प्रोपिकोनाजील ट्राईसाइक्लोजाव आदि के 3 ग्राम प्रतिकिलो बीज उपचार करने से इन रोगों से बचाव होता है। जैसे बीज विगलन पाँच जगमारी मायरोथिसियम एवं पत्ती धन्दा है।

जीवाणु कल्चर से बीज उपचार:-

पश्चात बीजों को जीवाणु कल्चर से उपचारित करना आवश्यक है। इस हेतु एक लीटर गर्म पानी में 250 ग्राम गुड का घोल बनायें एवं करने के बाद 500 ग्राम राइजोबियम कल्चर एवं 500 ग्राम पौ. एस. कल्चर प्रति हेक्टेयर की दर से कम्पोस्ट मिलायें फल्चर मिले घोल को बीजों में हलके हाथ से मिलाये फिर छाया में सुखाकर तत्काल बो देना चाहिए।

सोयाबीन की जातियां (सोयाबीन की किस्में):-

हमारे खेत में सोयाबीन की खेती का प्रारम्भ काली तुर नामक किस्म से हुई थी। जिसके दाने काले रंग के थे. इसके पश्चात् पीले दाने वाली टी-9 किस्म प्रकाश में आई इसकी सफलता के बाद अंकुर, अलकार, शिलाजीत, पंजाब-1 किस्में किसानों द्वारा पंसद की गई। बाद में गौरव मोनेटा, एम.ए.सी.एम. 13 (मैक्स-13) मैक्स 58 पूसा 16,20,40 धीरे-धीरे प्रचलन में आई। सोयाबीन की प्रमुख किस्में JS335. NRC 337, NACS 124. PK 1029, JS95-60, JS90-05, RKM 24, RKM45, JS 20-29, JS20-34. NRC 37, बिरसा सोयाबीन, बिरसा सफेद सोयाबीन, RKM 18, तथा RKUS-5 आदि ।

सोयाबीन की बुवाई हमेशा कतारों में करनी चाहिए। बीज एवं खाद को अलग-अलग डालना चाहिए, जिससे अंकुरण प्रभावित नहीं होगा तथा बीज की गहराई 3-4 सें.मी. से अधिक नहीं रखनी चाहिए।

सोयाबीन की बुवाई की विधियाँ:-

छिड़कवाँ विधि:-

कुछ क्षेत्रों में किसान सोयाबीन का बीज एवं खाद मिलाकर छिड़काव करने के बाद डिस्क हैरो चलाकर पाटा देते हैं। यह सोयाबीन बोने की दोषपूर्ण विधि है। जिसमें निम्न हानियाँ होती हैं एवं उत्पादन में गिरावट आती है।

  • बीज की मात्रा अधिक लगती है।
  • वर्षा का जल मिट्टी सोख नहीं पाती है क्योंकि पाटा लगा होने के कारण पानी बह कर चला जाता है।
  • निराई-गुडाई, कीटनाशक छिड़काव में अवरोध उत्पन्न होता है।
  • भूमि की सतह से जल वह जाने के कारण मिट्टी की नमी का संरक्षण नहीं हो पाता है। अतः सूखे के दौरान फसल पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।

कतार से बुवाई विधि:-

सोयाबीन का बीज हमेशा कतारों में लाईन से लाइन 45 से.मी. तथा पौधा से पौधा 4-5 सें.मी. ही बोना चाहिए क्योंकि यह सरल, सस्ती एवं उपयुक्त विधि है इस विधि से निम्न लाभ इस प्रकार हैं ।

  • बीज सही जगह पर पड़ता है और अंकुरण सही होता है। पौधों की संख्या उचित होती है।
  • बीज की मात्रा कम लगती है।
  • खरपतवार नियंत्रण एवं पौध संरक्षण में सुविधा होती है।
  • कुड़ में पानी भरने से मिट्टी नमी सोख लेती है इस कारण लम्बे समय तक वर्षा न होने पर भी फसल पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता है।

मेड़ नाली विधि:-

यह सोयाबीन बोने की सर्वोत्तम विधि है। सोयाबीन की बुवाई की इस विधि में बीजाई मेड़ों पर की जाती है तथा दो मेड़ों के बीच की दूरी 15 सें.मी. गहरी नाली बनाई जाती है और मिट्टी को फसल की के पौधे में तरफ कर दिया जाता है। इस विधि के लाभ निम्न:

  • इस विधि से खरीफ मौसम में फसल को अल्प वर्षों के समय नमी की कमी महसूस नहीं होती है।
  • बीजों की बुवाई मेडों पर होने के कारण अति वर्षा तथा तेज हवा के समय पौधों के गिरने की संभावना नहीं होती है।अल्प वर्षा अधिक वर्षा मे लम्बे अंतराल होने से सोयाबीन की फसल प्रभावित नहीं होती है।
  • अति वर्षा के समय अतिरिक्त वर्षा जल इन नालियों से खेत के बाहर निकल जाता है।

सिचाई एवं जल निकास प्रबंधन:-

सोयाबीन खरीफ की फसल में सिंचाई की आवश्यता नहीं पड़ती है।अधिक दिनों तक बरसात नहीं होने पर सिचाई की आवश्यकता पड़ सकती है।

सोयाबीन में फूल एवं फलिया लगते समय क्रांतिक अवस्था होती है। इस अवस्था में वर्षा नहीं होने पर सिचाई आवश्यक होती है। अधिक वर्षा भी फसल के लिए नुकसानदायक होती है इसलिए जल निकास का उचित प्रबंधन करना अति आवश्यक होता है।

खरपतवार प्रबंधन:-

सोयाबीन का पौधा प्रारम्भिक अवस्था में धीमी गति से वृद्धि करता है। इसलिए खेत में तीव्र गति से बढ़ने वाले खरपतवार से 25-70 प्रतिशत तक नुकसान होता है। इसलिए बुवाई के 40-45 दिन तक खेत में खरपतवार को बढ़ने से रोका जाय। इसके लिए बोआई के 20 दिन तथा 40 दिन बाद दो बार निराई-गुड़ाई करके खेत से खरपतवार को निकालते रहना चाहिए।

रसायन विधि से खरपतवार नियंत्रण:-

  • बुवाई के पूर्व उपयोग में आने वाले पलूक्लोरेलीन 48 ई.सी. 2 लीटर या ट्रायइफ्यूरोलीन 50 ई.सी. 2 लीटर मात्रा प्रति हेक्टेयर का 700 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
  • बुवाई के तुरंत बाद व सोयाबीन के अंकुरण के पूर्व में काम में आने वाले एलाक्लोर 4 लीटर या एलाक्लोर 10 जी 20 किलो या मेटालोक्लोर 50 इ.सी. 2 लीटर या पेडीमेथालिन 30 ई.सी. 25 लीटर प्रति हेक्टेयर 700 लीटर पानी में छिड़काव करना चाहिए।
  • चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार के नियंत्रण के लिए क्लोरोन्यूरॉन ईथाइल 30 ग्राम प्रति हेक्टेयर का स्प्रे बुवाई के 15-20 दिन बाद करें।
  • दोनों प्रकार के खरपतवारों के नियंत्रण के लिए इमेजावापायर 10/ एसएल. 720 मि.ली. को 700 मि.ली. लीटर पानी में घोल कर 2-3 पत्ती या 3 इंच खरपतवार की अवस्था में स्प्रे करें।

खरपतवारनाशी उपयोग के समय खेत में पर्याप्त मात्रा में नमी का होना अति आवश्यक है। इस तरह आप सोयाबीन की खेती में उपरोक्त तरीके से कृषि कार्य करके अधिकतम उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं।

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