Cultivate Peanuts in Hindi ! मूंगफली की खेती:-
मूँगफली खरीफ की एक महत्वपूर्ण तिलहनी फसल है। यह खाद्य तेल का बहुत अच्छा स्रोत है। हमारे देश में मूँगफली का उपयोग तेल (80 प्रतिशत), बीज (12 प्रतिशत), घरेलू उपयोग (6 प्रतिशत) एवं निर्यात (2 प्रतिशत) के रूप में होता है। मूँगफली के दानों में 45 प्रतिशत से अधिक तेल होता है। इसके अतिरिक्त इसके दानों में 26 प्रतिशत प्रोटीन और 10.2 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट होता है। तेल निकालने के बाद बची हुई खली भी एक पौष्टिक पशु आहार एवं कार्बनिक खाद के रूप में काम आती है। इसके अलावा मूँगफली की फसल वातावरण के नाइट्रोजन को ज़मीन में स्थिर कर भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाती है।

मूँगफली की खेती की काफी संभावनायें हैं। पिछले कुछ वर्षों में इस क्षेत्र में मूँगफली की खेती की जाने लगी है। परन्तु किसान उन्नत कृषि तकनीक के जानकारी के आभाव में अच्छी फसल नहीं ले पा रहे हैं। फसल की अच्छी पैदावार हेतु विभिन्न कृषि प्रक्रियाओं को अपनाकर खेती करना आवश्यक है।
मूँगफली की उन्नत प्रभेद:-
1.ए. के. 12-24:- यह गुच्छा वाली अगात किस्म है एवं 15-17 क्विंटल / है की उपज देती है। यह किस्म 100-110 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। इसमें 46 प्रतिशत तेल पाया जाता है।
2. जे.एल. 24 व फूल प्रगति:- यह प्रभेद 15-18 क्विंटल / है की उपज देती है। यह कम समय (95-100 दिन) में पककर तैयार हो जाती है तथा इसमें 48-50 प्रतिशत तेल की मात्रा होती है। यह किस्म सूखा सहनशील है।
3. जी.जी.-2:- यह गुच्छा वाली अगात किस्म है। इसकी फलियों की उपज लगभग 20-22 क्विंटल/हे है। यह 105-108 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। इसमें तेल की मात्रा 48-50 प्रतिशत होती है।
4. टी.जी.- 22:- यह किस्म भी 100-105 दिनों में पककर लगभग 20-22 क्विटल / हे. की उपज देती है। इसमें तेल की मात्रा 48-50 प्रतिशत होती है।
5. बिरसा मूँगफली -1:- इस प्रभेद की औसत उपज 20-22 क्विटल/हे है। यह किस्म 112-120 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इसमें तेल की मात्रा 48 प्रतिशत होती है।
6. बिरसा मूँगफली-2 :- यह किस्म 22-24 क्विंटल/ हे की उपज देती है तथा 117 से 120 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। इसमें तेल की मात्रा 48 प्रतिशत होती है।
7. बिरसा मूँगफली-3 :- यह अति उपजशील किस्म है जो लगभग 22-25 क्विटल/हे की उपज देती है। यह किस्म 120-125 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। इसमें तेल की मात्रा 46-48 प्रतिशत होती है।
8. के 6 :- यह अति उपजशील किस्म है जो लगभग 22-25 क्विंटल / हे की उपज देती है। यह किस्म 120-125 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। इसमें तेल की मात्रा 48 प्रतिशत होती है।
मूंगफली की खेती में भूमि का चुनाव:-
मूँगफली की खेती के लिये हल्की बलुआही मिट्टी जिसमें जल का अच्छा निकास हो, उपयुक्त होती है। ऐसी भूमि का पी एच मान 6.5 से 7.0 तक होना चाहिये। भारी और कड़ी मृदा इसकी खेती के लिये अनुपयुक्त होती है।
मूंगफली खेत की तैयारी कैसे करे:-
खेत की तैयारी मई के महीने में करें। एक जुलाई मिट्टी पलटने वाले हल से करके 2-3 बार हैरो चलावे जिससे मिट्टी भुरभुरी हो जाए। उसके बाद पाटा चलाकर खेत समतल कर लें जिससे मृदा में नमी संरक्षित रहती है। बोआई पूर्व भूमि उपचार आवश्यक है। मूँगफली की फसल में दीमक अधिक लगती है। जिन क्षेत्रों में दीमक का प्रकोप हो वहाँ लिण्डेन धूल 25 कि.ग्रा. प्रति हेक्टर की दर से बोआई पूर्व खेत में मिला देना चाहिए। दीमक का प्रकोप कम करने के लिये खेत की पूरी सफाई जैसे सूखे डंठल हटाना, कच्ची खाद का प्रयोग न करना आदि उपाय सहायक होते हैं।
मूंगफली की बोआई कब करे:-
सामान्यतः खरीफ मूंगफली की बोआई जून के द्वितीय सप्ताह से जुलाई के प्रथम सप्ताह के मध्य की जाती है। अगात किस्मों के लिये कतार से कतार की दूरी 30 से भी और पौधे से पौधे की दूरी 10 से. मी रखनी चाहिये जबकि अन्य किस्मो (फलने वाली) में कतार से कतार की दूरी 45 सें. मी. व पौधे से पौधे की दूरी 15 से. मी. रखनी चाहिए।
मूँगफली की बीज दर व बीजोपचार:-
मूँगफली की अगात किस्मों के बोआई के लिये प्रति हेक्टर 75-80 किग्रा बीज (गिरी) की आवश्यकता होती है जबकि मध्य अगात किस्मों के लिये 80-90 किग्रा बीज की जरूरत होती है।
बीज जनित रोगों एवं भूमिगत कीटों से फसल को बचाने के लिये फफूदनाशक एवं कीटनाशक दवा से बीजों को उपचारित करना चाहिये। सर्वप्रथम बोआई के पहले बीज को 3 ग्राम थायरम या 2 ग्राम मेन्कोजेब प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करना चाहिए। दीमक की रोकथाम के लिये क्लोरोपायरिफॉस 20 ई.सी. 6 मि.ली. प्रति कि.ग्रा. बीज या एसीफेट 75 एस.पी. 6 ग्रा. प्रति की ग्रा बीज की दर से उपचार कर बोआई करें।
मूँगफली के बीज को राइजोबियम कल्चर से उपचारित करना लाभदायक रहता है। ध्यान रहे बीजोपचार उपर्युक्त क्रम में करें यानि पहले फफूदनाशी से, उसके बाद कीटनाशी एवं अन्त में राइजोबियम कल्चर से बीजोपचार करें। राइजोबियम कल्चर से बीज के उपचार की विधि पैकेट पर लिखी होती है।
मूंगफली की खेती में खाद एवं उर्वरक:-
मूँगफली की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिये यह आवश्यक है कि खेत में उचित मात्रा में जीवांश उपलब्ध हो। अतः 3 वर्ष में एक बार 10 टन प्रति हेक्टर गोबर की सड़ी हुई खाद या कम्पोस्ट बुआई के 2-3 सप्ताह पूर्व खेत में मिला दें। उर्वरक के रूप में मूंगफली की फसल में प्रति हेक्टर 20-25 कि.ग्रा. नेत्रजन एवं 50-60 किग्रा फॉस्फोरस आवश्यक है। नेत्रजन की पूरी मात्रा बोआई से पहले यूरिया द्वारा देनी चाहिए।
फास्फोरस का सबसे अच्छा स्रोत सिंगल सुपर फास्फेट है। फॉस्फोरस की पूरी मात्रा बोआई से पहले यूरिया द्वारा देनी चाहिए। फॉस्फोरस की पूरी मात्रा बोआई के समय दी जानी चाहिए। फॉस्फोरस के लिए 375 कि.ग्रा. एस. एस.पी. काम में लें। सिंगल सुपर फॉस्फेट काम में लेने से फसल को 45 किग्रा गन्धक भी उपलब्ध हो जाता है।
मूंगफली की खेती में सिंचाई:-
मूँगफली की खेती वर्षा पर निर्भर है, परन्तु सूखा पड़ने की स्थिति में आवश्यकतानुसार 1-2 सिंचाई करनी चाहिए। विशेषकर फूल आने की अवस्था एवं दाना बनते समय यदि मृदा में नमी हो तो सिंचाई अवश्य करें।
मूंगफली की खरपतवार नियंत्रण:-
खरीफ में मूंगफली की फसल में खरपतवारों का प्रकोप अधिक रहता है। फैलने वाली किस्मों की तुलना में गुच्छा किस्मों में खरपतवार ज्यादा होते हैं। खरपतवार से उपज औसतन 25-50 प्रतिशत तक प्रभावित होती है। फसल को बोआई के 45 दिन बाद तक खरपतवार सबसे अधिक नुकसान पहुंचाते हैं। अतः इस अवधि में फसल को खरपतवार से मुक्त रखना चाहिये। 30 दिन की फसल होने तक मूंगफली में निराई-गुडाई अवश्य पूरी कर लेनी चाहिये तथा गुच्छा किस्मों के पौधों की जडों पर मिट्टी अवश्य चढ़ा देनी चाहिए।
रसायन द्वारा खरपतवार नियंत्रण हेतु बोआई के 1-2 दिन के अन्दर तृण-नाशक दवा “टोक ई-25” की 4 लीटर दवा 600 लीटर पानी में घुलाकर प्रति हे की दर से छिड़काव करने से 3-4 सप्ताह तक खरपतवारों का प्रकोप रूका रहता है।
मूंगफली की प्रमुख रोग एवं नियंत्रण कैसे करे:-
ग्रीवा विलगन रोग (कॉलर रॉट):- इस रोग से बचाव हेतु बीजों को 3 ग्राम थीरम या 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम 50% wp दवा से प्रति किग्रा बीज दर से उपचारित करके बोना चाहिये।
टिक्का रोग:- यह रोग फसल के उगने के 40 दिन बाद दिखाई देता है। इस रोग के कारण पत्तियों पर मटियाले रंग के गहरे वृताकार धब्बे पड़ जाते हैं। इस रोग से बचाव हेतु मेन्कोजेब (डाइथेन एम 45) 0.2 प्रतिशत या कार्बेन्डाजिम 50% wp दवा को 800-1000 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टर 15-20 दिन के अन्तराल पर छिड़काव करें।
पीलिया रोग:- जिन खेतों में पीलिया रोग होता है उनमें 0.1 प्रतिशतः गन्धक के तेजाब का घोल या 0.5 प्रतिशत फेरस सल्फेट (हरा कशीश) के घोल का छिड़काव फूल आने से पूर्व एक बार एवं पूरे फूल के बाद दूसरी बार करें। इस घोल में चिपकाने वाला पदार्थ जैसे साबुन आदि अवश्य मिलायें।
मूंगफली की खेती का प्रमुख कीट एवं नियंत्रण:-
सफेद लट:- मूँगफली उत्पादन में सफेद लट (ग्रब) एक गम्भीर समस्या है। इसके प्रकोप वाले क्षेत्रों में यह फसल को 20-100 प्रतिशत तक नुकसान करते हैं। मूसला व कम जड़ें होने के कारण मूंगफली में अन्य रेशेदार जड़ों वाली फसलों जैसे कि ज्वार, बाजरा, गन्ना आदि की तुलना से अधिक नुकसान होता है। इसके रोकथाम के लिए प्रभावित क्षेत्रों में मई-जून के माह में दो बार खेत की गहरी जुताई करें जिससे परभक्षी चिडियों हेतु ग्रब मिट्टी के ऊपर आ जाए।
साथ ही साथ बीजों को बोआई पूर्व क्लोरोपाइरीफॉस 20 ई.सी. (1 लीटर / 40 किग्रा बीज दर) से उपचारित करें। बोआई पूर्व फोरेट 10 जी या क्यूनॉलफॉस 5 जी या कार्बोफ्यूरॉन 3 जी 25 कि.ग्रा. प्रति हेक्टर की दर से मृदा में मिलाना लाभदायक होता है।
दीमक:- मूँगफली में शुष्क मौसम या उगाने के मौसम में कम वर्षा होने पर दीमक का प्रकोप अत्याधिक होता है। दीमक के कारण पौधों की मृत्युदर 5-50 प्रतिशत तथा फलियों की एक साथ परिपक्वता न होने के कारण फलियों का नुकसान ज्यादा होता है। दीमक से बचाव हेतु खड़ी फसल में 4 लीटर क्लोरोपाइरीफॉस 20 ई.सी प्रति हेक्टर की दर से सिंचाई के साथ देवे।
भुवा पिल्लू:- इससे फसल को काफी नुकसान होता है। इसके रोकथाम हेतु इन्डोसल्फान 1000 या नुवान 300 मी.ली की दर से 450 लीटर पानी में घोलकर 15-20 दिनों के अन्तराल पर 2-3 बार स्प्रे करना चाहिए।
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मूंगफली की खेती का कटाई एवं भण्डारण कैसे करे:-
मूंगफली की फसल तैयार होने की अवस्था में फली तोड़ने पर अन्दर के बीज भूरे होने लगते हैं एवं बीज के उपर का आवरण भी पतली झिल्ली जैसा हो जाता है। इस अवस्था में खेत में सिंचाई करके पौधों को उखाड़ लें। तोड़ी गई फलियों को धूप में 7-10 दिनों तक अच्छी तरह सुखाना चाहिए जिससे नमी 8 से 10 प्रतिशत से कम हो जाए। अधिक नमी होने पर पीली फफूंद (एस्पर्जीलस फ्लेक्स) में एफलाटॉक्सिन बनने का खतरा रहता है। अच्छी तरह सूखी हुई फलियों को बजाने पर आवाज आती है।
बीज-खोल रगड़ने पर टूट जाता । सूखी हुई फलियों को साफ करके बोरों में रखना चाहिये। बोरों को तह में इस प्रकार रखना चाहिए कि हवा आने-जाने के लिये जगह रहे बोरों को लकड़ी के तख्तों पर रखना चाहिये जिससे वे नमी और चूहों से बचे रहें।
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