सर्वनाम किसे कहते हैं:-
परिभाषा संज्ञाओं के स्थान पर उनके प्रतिनिधि के रूप में जिन शब्दौ का प्रयोग किया जाता है, उन्हें ‘सर्वनाम’ कहते हैं। ‘राम परीक्षा नहीं दे सका क्योंकि वह बीमार हो गया था। इस वाक्य में ‘वह’ का प्रयोग राम के लिए हुआ है, अतः ‘वह’ शब्द सर्वनाम कहा जायेगा। वाक्य में यदि सर्वनामों का प्रयोग न किया जाय तो एक ही संज्ञा का प्रयोग कई बार हो जायगा और वाक्य की सुन्दरता नष्ट हो जायेगी, अर्थात् सर्वनाम संज्ञा को पुनरुक्ति दोष से बचाता है। इस प्रकार, हिन्दी में मैं, तू, आप, यह, वह, जो, सो, कोई, कुछ, कौन एवं क्या सर्वनाम है।

सर्वनाम के कार्य:-
१. संज्ञा जहाँ उसी वस्तु का बोध कराता है, जिसका वह नाम है, वहाँ सर्वनाम पूर्वापर सम्बन्ध के अनुसार किसी भी वस्तु का बोध कराता है। ‘लड़का’ कहने से मात्र लड़के का ही बोध होता है, पर ‘वह’ कहने से पूर्वापर सम्बन्ध के अनुसार किसी वस्तु का बोध हो सकता है।
२. यह वाक्यों में किसी नाम की आवृत्ति नहीं होने देता; जैसे रमेश एक अच्छा लड़का है। रमेश रोज सुबह उठता है। रमेश रोज स्कूल जाता है।
ऊपर के प्रत्येक वाक्य में रमेश का प्रयोग किया गया है। यहाँ ‘रमेश’ शब्द की बेकार आवृत्ति हुई है। इससे वाक्य भद्दा मालूम पड़ता है। अन्तिम् दो वाक्यों में पुनः ‘रमेश’ न लिखकर अगर ‘वह’ लिखा जाय, तो इससे वाक्य की सुन्दरता बढ़ जायगी। अतः इसके प्रयोग से नाम की आवृत्ति नहीं होती और भाषा अधिक स्पष्ट तथा सुन्दर हो जाती है।
३. इसमे निकटता और दूरी का बोध कराता है। ‘यह’ से निकटता और ‘वह’ से दूरी का बोध होता है।
४. इसमे आदर और अनादर का बोध कराता है। आप से आदर का और तू’ से अनादर का बोध होता है।
५. इसमे निश्चय अनिश्चय का बोध कराता है। ‘यह’, ‘ये’, ‘इस’ आदि से निश्चय का बोध होता है और कोई’, ‘कुछ’ आदि से अनिश्चय का ।
६. इसमे से जिज्ञासा की अभिव्यक्ति होती है। ‘कौन’, ‘क्या’ आदि से जिज्ञासा का बोध होता है।
७. इसमे प्रधान और आश्रित वाक्यों में सम्बन्ध भी जोड़ता है, जैसे जो सोता है, सो खोता है।
सर्वनाम के कितने भेद होते हैं:-
इसके के छह भेद है:
१. पुरुषवाचक
२. निश्चयवाचक
३. अनिश्चय वाचक
४. प्रश्नवाचक
५ सम्बन्धवाचक
६ निजवाचक
पुरुषवाचक:- जिस सर्वनाम से पुरुष अर्थात् बातचीत या लेख के क्रम में बोलने वाले, सुनने वाले या जिसके विषय में कहा जाय उसका ज्ञान हो, उसे पुरुषवाचक सर्वनाम कहते हैं, जैसे मैंने तुम्हें उसकी पुस्तक दी। इस वाक्य में ‘मैं’ कहनेवाले के लिए, ‘तुम’ सुननेवाले के लिए तथा ‘उस’ जिसकी चर्चा चल रही है उसके लिए आया है। अतः ये तीनों पुरुषवाचक कहे जायेंगे।
पुरुषवाचक के भेद:-
(क) उत्तमपुरुष बातचीत या लेख के क्रम में जो बोलता या लिखता है, उसे ‘उत्तमपुरुष’ कहते हैं, जैसे मैं, हम
(ख) मध्यमपुरुष जिसे सम्बोधित कर कहा या लिखा जाता है, उसे मध्यमपुरुष कहते हैं, जैसे तू, तुम, आप
(ग) अन्यपुरुष या प्रथमपुरुष जिसके विषय में कुछ कहा या लिखा जाता है, उसे ‘अन्यपुरुष’ या ‘प्रथमपुरुष’ कहते हैं, जैसे- वह; वे; यह; ये;
निश्चयवाचक:- जिस सर्वनाम से किसी निश्चित पदार्थ का ज्ञान हो, उसे ‘निश्चयवाचक सर्वनाम कहते हैं। वह बहुत अच्छा लड़का है, ‘यह गाय खूब दूध देती है। इन दोनों वाक्यों में ‘वह’ और ‘यह’ निश्चयवाचक हैं।
निश्चयवाचक सर्वनाम के भेद:-
(क) निकटवर्ती पदार्थ का वाचक – यह निकट के पदार्थों का ज्ञान कराता है; जैसे यह ।
(ख) दूरवर्ती पदार्थ का वाचक – इससे दूर के पदार्थों का बोध होता है, जैसे- वह
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विरामचिह्न – अभ्यास, परिभाषा, प्रयोग, और उदाहरण
अनिश्चयवाचक:- जो सर्वनाम किसी निश्चित पदार्थ का ज्ञान न कराये, उसे ‘अनिश्चयवाचक सर्व नाम कहते हैं। ‘कोई आ रहा है’; खा लो — इन दोनों वाक्यों में ‘कोई’ और ‘कुछ’ दोनों ही अनिश्चित व्यक्ति तथा वस्तु के लिए आये है, अतः इन्हें अनिश्चयवाचक सर्व नाम कहेंगे।
अनिश्चयवाचक दो हैं- (१) कोई और (२) कुछ। ‘किसी’ ‘को” का ही रूप है।
‘कोई’ और ‘कुछ’ के प्रयोग में अन्तर- अनिश्चयवाचक में कोई का प्रयोग मनुष्य आदि चेतन के लिए तथा कुछ का प्रयोग जड़ वस्तु या छोटे कोड़ों जीवों आदि के लिए प्रायः होता है, जैसे कोई लगता है, कोई इधर ही आ रहा है।
प्रश्नवाचक:- जिस सर्वनाम से प्रश्न का बोध हो उसे ‘प्रश्रवाचक सर्वनाम’ कहते हैं। ‘कौन आ रहा है’, ‘क्या खा रहे हो’ इन वाक्यों में ‘कौन’ और ‘क्या’ प्रश्न के लिए आए है, अतः इन्हें प्रश्रवाचक सर्वनाम कहते हैं। ‘कौन’ और ‘क्या’ ये ही दो प्रश्नवाचक हैं।
‘कौन’ और ‘क्या’ के प्रयोग में अन्तर– ‘कौन’ का प्रयोग प्रायः मनुष्यों तथा ‘क्या’ का प्रयोग पशुओं, कीड़ों और निर्जीव पदार्थों के लिए होता है, जैसे- “कौन आया है ?’ ‘क्या चीज है ?
जैसे- ‘कौन-सा पौधा ?’ ‘कौन-सी बात ?
सम्बन्धवाचक:- जिस सर्वनाम से किसी संज्ञा का सम्बन्ध सूचित हो, उसे ‘सम्बन्धवाचक सर्वनाम’ कहते हैं। ‘बिना विचारे जो करे, सो पाछे पछताय’ में ‘जो’ और ‘सो’ सम्बन्धवाचक सर्वनाम हैं। ‘जो’ के प्रयोग के साथ ही ‘सो’ का प्रश्न हमारे दिमाग में आता है। इन दोनों का सम्बन्ध नित्य है, अतः इन्हें ‘नित्य सम्बन्धी सर्वनाम भी कहते है। जिसकी लाठी, उसकी भैंस’ में भी ‘जिस’ और ‘उस’ सम्बन्धवाचक (नित्य सम्बन्धी) है। आधुनिक हिन्दी में ‘सो’, ‘तिस’, ‘तिन’ शब्दों के स्थान पर ‘वह’, ‘उस’ और ‘उन’ का ही प्रयोग शुद्ध माना जाता है।
निजवाचक:- जो सर्वनाम निज या अपने आपका बोध कराये, उसे ‘निजवाचक सर्वनाम कहेंगे, जैसे- मैं यह काम आप कर लूँगा। यहाँ ‘आप’ निजवाचक है।
निजवाचक ‘आप’ और पुरुषवाचक ‘आप’ में अन्तर- ‘आप’ और पुरुषवाचक ‘आप’ के प्रयोग में थोड़ी मित्रता है।
यह भिन्नता मुख्यतः तीन प्रकार की है:-
(क) पुरुषवाचक आदरसूचक ‘आप’ का बहुवचन ‘आप’ या ‘आपलोग’ होता है, किन्तु निजवाचक में ‘आप’ ही दोनों वचनों में होता है, जैसे आप क्या कर रहे हैं?’ ‘आपलोग क्या कर रहे हैं?’ (पुरुषवाचक) । ‘आप बुरा, तो जग बुरा।’ ‘भारतीय आप ही उठेगे, तो उठेंगे।’ (निजवाचक) ।
(ख) पुरुषवाचक आदरसूचक ‘आप’ प्रायः मध्यमपुरुष और कभी-कभी अन्यपुरुष के लिए आता है, किन्तु निजवाचक ‘आप’ तीनों पुरुषों के लिए आता है। जैसे- -आप अच्छे हैं न ? (मध्यमपुरुष) । जवाहरलाल भारत के प्रथम प्रधानमंत्री थे। आप जैसा महान् नेता पैदा नहीं हुआ।
पुरुषवाचक आदरसूचक ‘आप’ वाक्य में अकेले आता है, जैसे- आप कहाँ जा रहे हैं? किन्तु निजवाचक ‘आप’ दूसरे सर्वनाम या संज्ञा के साथ ही आता है, जैसे- राम आप आ रहा है।