संज्ञा की परिभाषा (sangya kise kahate hain), संज्ञा किसे कहते हैं उदाहरण सहित:-

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विरामचिह्न – अभ्यास, परिभाषा, प्रयोग, और उदाहरण
परिभाषा – किसी व्यक्ति, वस्तु, स्थान, भाव आदि के नामों को ‘संज्ञा’ कहते हैं।
जैसे- मनुष्य, मूर्खता, पत्थर, सेना आदि।
संज्ञा के निम्नलिखित प्रमुख कार्य है:-
(क) व्यक्तियों, ग्रह-नक्षत्रों , नदियों, पहाड़ों, राज्यों, देशों, महादेशों, पत्र पत्रिकाओं, पुस्तकों, दिनों महीनों आदि के नामों का बोध कराना। जैसे:- विन्ध्याचल, बिहार, रूस, एशिया, गंगा, कामायनी, चन्दामामा आदि।
(ख) पक्षियों, मिठाइयों, पशुओं,सवारियों आदि के नामों का बोध कराना। जैसे—गाय,साइकिल, जलेबी, कबूतर, आदि।
(ग) समूह का बोध कराना। जैसे- सेना, झुंड आदि।
(घ) किसी धातु या द्रव्य का बोध कराना।जैसे – घी , सोना, चाँदी, आदि।
(ङ) व्यक्ति या पदार्थों के भाव, धर्म, गुण आदि का बोध कराना। जैसे— मित्रता, चतुराई, दया, कृपा, उष्णता, आदि ।
संज्ञा के कितने भेद होते हैं उदाहरण सहित:-
अर्थ के आधार पर संज्ञा के पाँच भेद हैं:-
१. व्यक्तिवाचक
२. जातिवाचक
३. समूहवाचक
४. द्रव्यवाचक
५. भाववाचक
१. व्यक्तिवाचक:-व्यक्तिवाचक संज्ञा किसी विशेष व्यक्ति या स्थान का बोध कराती है; जैसे- गंगा, तुलसीदास, पटना, राम, हिमालय आदि। हिन्दी में व्यक्तिवाचक संज्ञा की संख्या सर्वाधिक है।
व्यक्तिवाचक संज्ञाओं में निम्नलिखित नाम समाविष्ट होते हैं:-
(क) व्यक्तियों के अपने नाम – जदु, मधु, ताहिर, साम आदि।
(ख) नदियों के नाम गंगा, गंडक, यमुना आदि।
(ग) झीलों के नाम-डल, बैकाल आदि।
(घ) समुद्रों के नाम- -प्रशान्त महासागर, हिन्द महासागर
(ङ) पहाड़ों के नाम- आल्स, विन्ध्य हिमालय आदि।
(च) गाँवों के नाम पैनाल, मनिअप्पा, बिस्पी आदि।
(छ) नगरों के नाम -जमशेदपुर, पटना, राँची आदि ।
(ज) सड़कों, दुकानों, प्रकाशनों आदि के नाम- अशोक राजपथ,परिधान, भारती भवन आदि।
(झ) महादेशों के नाम- एशिया, यूरोप आदि।
(ञ) देशों के नाम- चीन, भारतवर्ष, रूस आदि।
(ट) राज्यों के नाम- उड़ीसा, बिहार, महाराष्ट्र आदि।
(ठ) पुस्तकों के नाम- रामचरितमानस, सूरसागर आदि।
(ड) पत्र-पत्रिकाओं के नाम- दिनमान, अवकाश-जगत् आदि।
(ढ) त्योहारों, ऐतिहासिक घटनाओं के नाम- गणतंत्र दिवस, बालदिवस,रक्षाबंधन, शिक्षक-दिवस, होली, आदि।
(ण) ग्रह-नक्षत्रों के नाम चंद्र, रोहिणी, सूर्य आदि।
(त) महीनों के नाम- आश्विन, कार्तिक, जनवरी आदि।
(थ) दिनों के नाम- सोमवार, मंगलवार, बुधवार आदि।
२. जातिवाचक संज्ञा:- जातिवाचक संज्ञा किसी वस्तु या प्राणी की संपूर्ण जाति का बोध कराती है। जैसे गाय, नदी, पहाड़, मनुष्य आदि । ‘गाय’ किसी एक गाय को नहीं कहते, अपितु यह शब्द सम्पूर्ण गोजाति के लिए प्रयुक्त होता है। ‘मनुष्य’ शब्द किसी एक व्यक्ति के नाम को सूचित न कर ‘मानव’ जाति का बोध कराता है।
निम्नलिखित जातिवाचक संज्ञा के उदाहरण होते हैं-
(क) पशुओं, पक्षियों एवं कीट-पतंगों के नाम-खटमल, गाय, घोड़ा,चील, मैना आदि।
(ख) फलों, फूलों, सब्जियों के नाम- आम, केला, आदि।
(ग) विभिन्न सामग्रियों के नाम- आलमारी, कुर्सी, घड़ी, टेबुल आदि।
(घ) सवारियों के नाम- नाव, मोटर, रेल, साइकिल आदि।
(ङ) संबंधियों के नाम बहन, भाई आदि।
(च) व्यावसायिकों, पदों एवं पदाधिकारियों के नाम दर्जी, धोबी, भंगी,राज्यपाल आदि।
व्यक्तिवाचक संज्ञा और जातिवाचक संज्ञा के उदाहरण:-
व्यक्तिवाचक | जातिवाचक |
---|---|
तुलसीदास | कवि |
सीता | स्त्री |
गंगा | नदी |
कलकत्ता | नगर |
हिमालय | पहाड़ |
भारतवर्ष | देश |
३. समूहवाचक संज्ञा:-समूहवाचक संज्ञा पदार्थों के समूह का बोध कराती है; जैसे—झब्बा, दल, सभा, गिरोह, झुंड, सेना आदि। ये शब्द किसी एक व्यक्ति या वस्तु का बोध न कराकर अनेक का उनके समूह का बोध कराते हैं।
४. द्रव्यवाचक संज्ञा:-द्रव्यवाचक संज्ञा किसी धातु या द्रव्य का बोध कराती है; जैसे- पानी, चांदी, पीतल, सोना, घी आदि। द्रव्यवाचक संज्ञा की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसके पूर्ण रूप और अंश के नाम में कोई अन्तर नहीं होता, जबकि जातिवाचक के पूर्ण रूप और अंश के नाम में पर्याप्त हो जाता है। एक टुकड़ा सोना भी सोना है और एक बड़ा खंड भी सोना है, एक बूँद घी भी घी है और एक किलो घी भी घी है; किन्तु एक पूरे वृक्ष के टुकड़े को हम वृक्ष कदापि नहीं कहेंगे। उसे सिल्ली, टहनी, डाली आदि जो कह लें। द्रव्यवाचक से निर्मित पदार्थ जातिवाचक संज्ञा होते हैं।
५. भाववाचक संज्ञा:-भाववाचक संज्ञा व्यक्ति या पदार्थों के धर्म या गुण का बोध कराती है; जैसे- वीरता, चौड़ाई, मिठास, अच्छाई,लंबाई, आदि। भाववाचक में निम्नलिखित समाविष्ट होते हैं:-
(क) गुण- कुशाग्रता, चतुराई, सौन्दर्य आदि।
(ख) भाव – कृपणता, मित्रता, शत्रुता आदि।
(घ) माप – ऊँचाई, चौड़ाई, लम्बाई आदि।
(ङ) क्रिया दौड़धूप, पढ़ाई लिखाई आदि।
(च) गति फुर्ती, शीघ्रता, सुस्ती आदि।
संज्ञाओं के भेद दूसरा आधार पर किये जा सकते हैं-
पहला वर्गीकरण :-वस्तु की जीवंतता या अजीवंतता के आधार पर-प्राणि वाचक संज्ञा तथा अप्राणिवाचक संज्ञा के रूप में किया जा सकता है। घोड़ा, पक्षी, लड़का, आदि में जीवन है, ये चल-फिर सकते हैं; अतः इन्हें प्राणिवाचक
संज्ञा कहेंगे। पेड़, दीवार, ईंट आदि में जीवन नहीं है, ये न चल सकते हैं, न बोल सकते हैं, इसलिए इन्हें अप्राणिवाचक संज्ञा कहेंगे।
दूसरा वर्गीकरण:- गणना के आधार पर हो सकता है। ‘ जामुन’ शब्द को लें। ‘ जामुन’ को हम गिन सकते हैं. -एक, दो, तीन आदि। किन्तु ‘ जल’ को हम गिन नहीं सकते, केवल माप सकते हैं। प्रेम-घृणा आदि की भी गिनती नहीं हो सकती। इस तरह संज्ञा के भेद हुए- गणनीय और अगणनीय। इस वर्गीकरण का व्याकरण की दृष्टि से महत्त्व यह है कि गणनीय संज्ञा वे हैं जिनके एकवचन और बहुवचन दोनों होते हैं। अगणनीय संज्ञा का प्रयोग सदा एकवचन में होता है।
तीसरा वर्गीकरण:- व्युत्पत्ति की दृष्टि से संज्ञा के तीन भेद होते हैं :-
१. रूढ – ऐसी संज्ञाएँ जिनके खंड निरर्थक होते हैं, जैसे-‘ जामुन ‘। ‘ जामुन ‘ शब्द का ‘जा’ और ‘न’ अलग-अलग कर दें, तो इनका कुछ भी अर्थ नहीं हो सकता। हाथ, पैर, मुँह, घर आदि रूढ़ संज्ञा के उदाहरण है।
२. यौगिक – ऐसी संज्ञाएँ जिनके खंड सार्थक होते हैं, जैसे रसोईघर । ‘रसोईघर’ के दो खंड हैं-‘रसोई’ और ‘घर’। ये दोनों खंड सार्थक है। विद्यार्थी, पाठशाला, हिमालय, पुस्तकालय, आदि यौगिक संज्ञा के उदाहरण हैं।
३. योगरूढ़ – ऐसी संज्ञाएँ जिनके खंड सार्थक हों, परन्तु जिनका अर्थ खंड-शब्दों से निकलने वाले अर्थ से भिन्न हो; जैसे- पंकज ‘पंकज’ के दोनों खंड ‘पॅक’ और ‘ज’ सार्थक है। ‘पंक’ का अर्थ है ‘कीचड़’ और ‘ज’ का अर्थ है ‘जन्मा हुआ’, किन्तु ‘पंकज’ का अर्थ होगा ‘कमल’ न कि ‘कीचड़ से जन्मा हुआ।
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