विरामचिह्न (viram chinh)किसे कहते हैं कितने प्रकार के होते हैं:-
░Y░o░u░ ░M░a░y░ ░a░l░s░o░░L░i░k░e░
परिभाषा – किसी भी भाषा के सम्यक् ज्ञान एवं सुप्रयोग के लिए विरामचिह्नों का ज्ञान अनिवार्य है। यदि हम बिना विराम के बोलते या लिखते चले जाये, तो श्रोता या पाठक के लिए उस भाषा को समझना बड़ा कठिन हो जायगा। अतः कथन के स्पष्टीकरण, शैली को गतिशील एवं विचारों को सुबोध बनाने के लिए विरामचिह्नों का अभ्यास कर लेना चाहिए।

प्रमुख विरामचिह्न (विराम चिह्न के प्रकार)viram chinh in hindi list:-
१. अल्पविराम | ( , ) | (Comma) |
२. अर्द्धविराम | ( ; ) | (Semicolon) |
३. उपविराम | ( : ) | (Colon) |
४. पूर्णविराम | ( | ) | (Full-stop) |
५. प्रश्नसूचक | ( ? ) | (Mark of Interrogation) |
६. विस्मयसूचक | ( ! ) | (Mark of Exclamation) |
७. संयोजकचिह्न | ( – ) | (Hyphen) |
८. विवरणचिह्न | ( :- ) | (Colon-Dash) |
९. उद्धरणचिह्न | ( ” ” ) | (Inverted Commas) |
१०. कोष्ठकचिह्न | ( () ) | (Bracket) |
११. लोपचिह्न | ( xxx ) | (Mark of Elipses) |
१२. पुनरुक्तिसूचक चिह्न | ( ,, ,, ) | (Mark of Repetition) |
१३. लाघवचिह्न | ( ० ) | (Abbreviation) |
१. अल्पविरामचिह्न:-
अल्प का अर्थ होता है थोड़ी देर के लिए ठहराव। इसका प्रयोग वहाँ होता है, जहाँ बोलने या पढ़ने में थोड़ी देर के लिए रुकना पड़ता है। इसका प्रयोग निम्नलिखित स्थितियों में होता है तथा अल्पविराम चिन्ह के उदाहरण:-
(क) जहाँ एक ही प्रकार के शब्द या वाक्यांश आये, किन्तु उनके बीच ‘और’ आदि समुच्चयबोधक शब्द न हो जैसे- मोहन, कृष्ण और गोपाल,राम जा रहे हैं।
(ख) जहाँ वह तो तब आदि का लोप हो। जैसे जब वह आया था, पानी चरस रहा था। जो लड़का आया था, चला गया। आना है, आ जाओ।
(ग) समानाधिकरण शब्दों के बीच जैसे यूनान के राजा, सिकन्दर ने भारत पर आक्रमण किया।
(घ) सम्बोधनकारक के बाद, जैसे मोहन, तुम अपनी हरकतों से बाज नहीं आते हो। कुछ लोग ऐसी स्थिति में आश्चर्यसूचक चिह्न भी लगाते हैं, जैसे मोहन । तुम अपनी हरकतों से बाज नहीं आते हो।
(ङ) पर, परन्तु किन्तु, लेकिन मगर, तो भी आदि अव्ययों के पूर्व: जैसे – वह आया, किन्तु देर से।
(च) हां, नहीं आदि के बाद पूर्ति के वाक्य आने पर, जैसे हाँ, मैं भी चलूँगा।
(छ) उपवाक्यों के आगे पीछे या दोनों ओर। जैसे— चोर, पकड़ा गया था, भाग गया।
(ज) छंद के चरण के बीच जहाँ यति होती है। जैसे माला फेरत युग गया, गया ने मन का फेर।
२. अर्द्धविरामचिह्न:-
अल्पविराम की अपेक्षा जहाँ अधिक ठहराव अपेक्षित हो, वहाँ अर्द्ध विराम का प्रयोग होता है। अविराम का प्रयोग निम्नलिखित स्थितियों में होता है।
(क) जहाँ मुख्य वाक्य और समानाधिकरण का आपस में बहुत अधिक सम्बन्ध न हो। जैसे- -रात बड़ी सुहावनी थी, चांद मुस्करा रहा था, रह-रहकर कुछ पक्षी आसमान में उड़ते नजर आते थे, पर मेरी आँखों में नींद न थी।
(ख) जहाँ बाद में वाक्य के परिणाम की व्याख्या हो। जैसे- गाजे-बाजे बन्द हो गये लोगो की मुस्कराती आँखें गीली हो गयीं, यह दुःखद समाचार मिलते ही पूरा वातावरण बदल गया।
(ग) जहाँ वाक्य के उपवाक्य बहुत सम्बद्ध न हों। जैसे- कल किसे बुलाऊँ यह समारोह करूँ भी या न करूँ, मोहन को सूचित करूँ भी तो कैसे; कुछ समझ में नहीं आता।
३. उपविरामचिह्न:-
जहाँ अर्द्धविराम की अपेक्षा अधिक ठहराव वांछित हो, वहाँ उपविराम का प्रयोग होता है। जैसे उर्वशी विचार और विश्लेषण ।
४. पूर्णविरामचिह्न:-
यह प्रायः वाक्य की समाप्ति पर प्रयुक्त होता है, जहाँ देर तक रुकना पड़ता है। इसका प्रयोग सबसे अधिक किया जाता है। यह निम्नांकित स्थानों पर आता है।
(क) प्रत्येक वाक्य के अन्त में जैसे- मैं घर जा रहा हूँ।
(ख) छंदों में चरणों के अन्त में जैसे- दैव-दैव आलसी पुकारा।
१५. प्रश्नसूचक चिह्न:-
यह प्रश्नसूचक वाक्यों के अन्त में पूर्णविराम के स्थान पर आता है; जैसे तुम्हारा नाम क्या है ?
प्रश्नसूचक शब्द जब सम्बन्धसूचक शब्द का काम करे, तब प्रश्नसूचक चिह्न नहीं लगता है; जैसे- आपने क्या कहा, मैं नहीं जानता।
६. विस्मयसूचक चिह्न:-
आश्चर्य, घृणा, आह्लाद, उत्साह, शोक इत्यादि भाव व्यक्त करने में विस्मयसूचक चिह्न का प्रयोग होता है, इसकी स्थितियाँ ये हैं-
(क) आश्चर्यसूचक वाक्य के अंत में, जैसे- तू आ भी गया।
(ख) आर्यसूचक शब्दों के बाद भी इसका प्रयोग होता है; जैसे- अरे वह फेल हो गया।
(ग) अतिशय आश्चर्य के लिए कभी-कभी दो-तीन चिह्नों का प्रयोग भी होता है; जैसे- अरे, वह मर गया ! शोक !! महाशोक !!!
(घ) संबोधन का भाव व्यक्त करने के लिए भी इसका प्रयोग करते हैं; जैसे राम। जरा इधर आना।
(ङ) घृणा, आक्रोश आदि का भाव व्यक्त करने में भी इसका प्रयोग होता है, जैसे छिः छिः, तू कितना घृणित है।
७. संयोजकचिह्न:-
संयोजकचिह्न का निम्नलिखित अवस्थाओं में प्रयोग होता है:-
(क) सहचर शब्दों के साथ इसका प्रयोग होता है, जैसे खाना-पीना, आना-जाना, पाप-पुण्य आदि।
(ख) विपरीतार्थक शब्दों के बीच। जैसे-ऊँच-नीच, सुख-दुःख, गुण-दोष आदि ।
(ग) जब शब्दों के बीच सम्बन्धकारक का प्रत्यय ‘और’, ‘अथवा’ आदि पद लुप्त हों जैसे संत-मत, लीला-धाम, अलंकार योजना, लोटा-डोरी, लल्लू-जगधर।
८. विवरणचिह्न:-
किसी वस्तु के सविस्तार वर्णन में इसका प्रयोग होता है। जैसे इस देश में कई बड़ी-बड़ी नदियाँ है; जैसे- गंगा, सिंधु, ब्रह्मपुत्र आदि।
९. उद्धरणचिह्न:-
उद्धरणचिह्न का प्रयोग हम निम्नलिखित स्थितियों में कर सकते है:-
(क) जहाँ किसी पुस्तक से कोई वाक्य या अवतरण ज्यों-का-त्यों किया जाय वहाँ दुसरे उद्धरणचिह्न का प्रयोग होता है, जैसे- “जीवन विश्व की -प्रसाद
(ख) पुस्तक, उपनाम शीर्षक आदि उद्धृत करते समय इकहरे उद्धरण का प्रयोग होता है; जैसे— ‘निराला’ पागल नहीं थे। ‘कामायनी’ की कथा संक्षेप में लिखिए।
(ग) महत्त्वपूर्ण सूक्ति उद्धृत करने में जैसे- भारतेन्दु ने कहा था- “देश को राष्ट्रीय साहित्य चाहिए।”
१०. कोष्ठकचिह्न:-
इसका प्रयोग निम्नलिखित स्थितियों में होता है:-
(क) वाक्य में आये पदविशेष को भलीभाँति स्पष्ट करने के लिए इसका प्रयोग करते हैं। जैसे- धर्मराज (युधिष्ठिर) सत्य और धर्म के संरक्षक थे।
(ख) क्रमांक घेरने में इसका प्रयोग किया जाता है। जैसे- अलंकार के तीन भेद है- (१) शब्दालंकार, (२) अर्थालंकार और (३) उभयालंकार।
११. लोपचिह्न:-
जब वाक्य या अनुच्छेद में कुछ अंश छोड़कर लिखना हो तो लोपचिह्न का प्रयोग किया जाता है। जैसे रमेश ने सतीश को (….) कहकर गाली दी।
रिक्त स्थान की पूर्ति में इसकी जगह बिन्दीदार चिह्न का प्रयोग किया जाता है:- (………)।
१२. पुनरुक्तिसूचक चिह्न:-
किसी शब्द या वाक्य की पुनरुक्ति बचाने के लिए इस चिह्न का प्रयोग किया जाता है। जैसे – डॉ० श्री मुकेश कुमार – पाटना, डॉ० श्री राधव राय – कलकत्ता
१३. लाघवचिह्न:-
जहाँ पूरा-पूरा शब्द लिखना अभिप्रेत न हो, वहाँ उस पद के आरंभिक अक्षर के पश्चात् लाघवचिह्न का प्रयोग होता है।
जैसे— तिथि – ति
तारीख – ता
जिला – जि
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